*इजहार*
बड़े अरसों से मोहब्बत की थी उससे।
दिल की बात अपनी करने जा रहा था मैं आज जिससे।।
पल-पल उस ही पर मैं मरता हूँ,
शायद इसलिए इज़हार करने से डरता हूँ।।
दूर खड़ी थी वो सूट लाल था उसने पहना।
उसकी वो मासूम-सी मुस्कान थी उसका सबसे कीमती गहना।।
कदम जो मैंने थे उसकी ओर बढ़ाये,
वो धीमे-से मुस्कुराई शायद उसको भी था कुछ कहना।।
उसके नजदीक जो पहुँचा दिल मेरा थम-सा गया।
जहाँ था खड़ा मैं वही बस जम-सा गया।।
फिर बड़ी मुश्किलों से आँखें मैंने उससे मिलायी।
आज मुझे देखकर वो पागल भी शरमायी।।
जान चुकी थी शायद इरादे मेरे,
तभी बड़ी शरारत से उसने नजरें मुझसे चुरायी।।
दिल में याद किया खुदा को,
और हाथ उसका मैने थाम लिया।
बहुत बेचैन-सा था मैं,
बस यूँ समझ लो पहली मर्तबा इश्क़ वाला जाम लिया।।
हिम्मत जुटायी और इज़हार मैंने उसे कर दिया।
अपनी मोहब्बत की शिद्दत से बेकरार मैंने उसे कर दिया।।
ये सुनकर वो पास मेरे आयी।
आज पहली मर्तबा वो बिल्कुल ना थी घबरायी।
झट से उसने गले से मुझे लगाया,
कान मे बोली पागल इतनी-सी बात कहने में इतनी देर क्यों लगायी!?
निसार मलिक
बड़े अरसों से मोहब्बत की थी उससे।
दिल की बात अपनी करने जा रहा था मैं आज जिससे।।
पल-पल उस ही पर मैं मरता हूँ,
शायद इसलिए इज़हार करने से डरता हूँ।।
दूर खड़ी थी वो सूट लाल था उसने पहना।
उसकी वो मासूम-सी मुस्कान थी उसका सबसे कीमती गहना।।
कदम जो मैंने थे उसकी ओर बढ़ाये,
वो धीमे-से मुस्कुराई शायद उसको भी था कुछ कहना।।
उसके नजदीक जो पहुँचा दिल मेरा थम-सा गया।
जहाँ था खड़ा मैं वही बस जम-सा गया।।
फिर बड़ी मुश्किलों से आँखें मैंने उससे मिलायी।
आज मुझे देखकर वो पागल भी शरमायी।।
जान चुकी थी शायद इरादे मेरे,
तभी बड़ी शरारत से उसने नजरें मुझसे चुरायी।।
दिल में याद किया खुदा को,
और हाथ उसका मैने थाम लिया।
बहुत बेचैन-सा था मैं,
बस यूँ समझ लो पहली मर्तबा इश्क़ वाला जाम लिया।।
हिम्मत जुटायी और इज़हार मैंने उसे कर दिया।
अपनी मोहब्बत की शिद्दत से बेकरार मैंने उसे कर दिया।।
ये सुनकर वो पास मेरे आयी।
आज पहली मर्तबा वो बिल्कुल ना थी घबरायी।
झट से उसने गले से मुझे लगाया,
कान मे बोली पागल इतनी-सी बात कहने में इतनी देर क्यों लगायी!?
निसार मलिक